स्वतंत्रता दिवस पर विशेष !...... झारखंड के विस्मृत गांधी : पलामू के पूरनचंद और चास कॉलेज के संस्थापक


यह तस्वीर 23 जुलाई 1978 के दिन का है जब चास काॅलेज का शिलान्यास पलामूं के बरगदी नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के शिष्य बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री पूरनचंद जी के कर-कमलों से चास काॅलेज के भवन की आधारशिला चास -पुरूलिया-टाटा-रांची मार्ग पर राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या-32 पर कांड्रा-दिवानगंज में रखी गई थी। इस कार्यक्रम में उस समय के प्रमुख व्यक्तियों में बोकारो के निर्दलीय विधायक समरेश सिह , सचिव रोहिणी चटर्जी,राधारमण बनर्जी,प्रयाग केजरीवाल,सुखेन्दू पाठक,वनमाली  चौधरी, डा.आर.पी.वर्मा , डा.आर.के.राणा , प्रफुल्ल सिह चौधरी और चास काॅलेज के संस्थापक प्राचार्य और चास काॅलेज के वर्तमान स्वरूप के विश्वकर्मा प्रो. स्व.एनकेपी सिन्हा सहित हजारों की जन - समूह  उपस्थित थी ।


चास कॉलेज की स्थापना 1976 में हुई थी

चास काॅलेज की स्थापना 26 जुलाई 1976 को स्व.इमामुल हई खान,तात्कालिन मंत्री बिहार सरकार के सत्प्रयासों से हुई थी ।जिसका उद्देश्य चास,चंदनकियारी,तेलमोच्चो,तेलगड़िया (जहां आज इलेक्ट्रो-वेदांता स्टील उद्योग स्थित है)बिजूलिया,बरमसिया और पिंड्राजोरा सहित जैना मोड़,फुसरो,कसमार -दांतु और पेटरवार आदि क्षेत्रों के गरीब,हरिजन,आदिवासी व समाज के कमजोर एवं पिछड़े वर्गों तथा चास-बोकारो के विस्थापितों में उच्च शिक्षा प्रदान करना था। उस समय से लेकर आज तक गरगा-गवई और दामोदर में न जाने कितना पानी बह गया होगा लेकिन चास काॅलेज आज भी स्थिर,शांत और स्थायित्व के साथ शिक्षा का मशाल जलाये निरंतर प्रगति के पथ पर ज्ञान की ज्योति बिखेर रहा है।


पूरनचंद 4 बार डाल्टेनगंज से विधायक बने

आज चास काॅलेज,चास रांची विश्वविद्यालय ,रांची , विनोबा भावे विश्वविद्यालय ,हजारीबाग के विपिन विथियों से गुजरता हुआ विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय,धनबाद की( यू.जी.सी. की नैक ग्रेड B से मान्यता प्राप्त) एक अंगीभूत ईकाई है ।जहां आज भी तीनों संकाय- कला,वाणिज्य और विज्ञान संकाय के इंटर - डिग्री में लगभग आठ हजार छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। पूरनचंद जी को झारखंड का गाँधी इसलिए कहा जाता है  कि डालटेनगंज विधान सभा से चार बार लगातार विधायक बनने तथा सम्पूर्ण छोटानागपुर  (अब झारखंड) से आजादी के बाद  पहली बार कैबिनेट मंत्री बनने के वाबजूद सम्पति के नाम पर एक धूर न तो कहीं जमीन और न ही कोई वारिस था ,यदि कोई  सम्पति थी तो वह --- "पिंटू का ओटा ,घसीटा का कोठा और पूरनचंद का लोटा " ।यह किंवदन्ती तात्कालिन बिहार से झारखंड बनने के पच्चीस वर्ष बाद भी आज भी गली-कूचों और राजनीतिक चौपालों में गूंजती है--" पूरनचंद  नहीं आंधी है ,झारखंड का गाँधी है। इस महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ झारखंड की सरकार आज भी सम्मान देने में  न सिर्फ कोताही कर रही है वरन् झारखंड के इस विस्मृत स्वतंत्रता - सेनानी के साथ अन्याय कर रही है। यह लेखक के अपने विचार हैं।


लेखक

डॉ. विजय प्रकाश

सेवानिवृत प्रोफेसर इंचार्ज

चास कॉलेज चास

बोकारो, झारखण्ड

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