मेहंदी रचे हाथों और सोलह श्रृंगार में सजी सुहागिनों ने मनाया करवा चौथ का पावन पर्व


सुहागन महिलाओं ने दिन भर निर्जला उपवास रखकर अपने-अपने पति की लंबी आयु के लिए शाम को पूजा-अर्चना की. पूजा के बाद करवा चौथ व्रत की कथा का श्रवण किया।  उसके बाद चांद दिखने पर चलनी से चांद और अपने पति को देखकर अपना व्रत पूरा किया। इसके पहले व्रतधारी महिलाओं ने 16 श्रृंगार कर सजी थी. एक दिन पहले अपने-अपने हाथों पर मेहंदी रचाई। सेक्टर तीन प्राचीन शिव मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेन्द्र कुमार पांडेय ने कहा कि महिलाएं अखंड़ सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जबकि अविवाहित कन्याएं मनचाहे वर की कामना के लिए यह व्रत करती हैं। करवाचौथ का व्रत तब ही पूर्ण माना जाता है जब इस कथा का पाठ किया जाता है।

कथा की महिमा के बारे भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाया था 

करवाचौथ व्रत कथा का महात्मय सबसे पहले भगवान शिव से माता पार्वती से कहा था और द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को सुनाया था। महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने के लिए गए थे तो अर्जुन काफी समय तक वापस ही नहीं लौटा तब द्रौपदी को बड़ी चिंता हुई। तब वह भगवान कृष्ण के पास पहुंची और भगवान कृष्ण ने उन्हें करवाचौथ का व्रत करने की सलाह दी। इस बाद भगवान कृष्ण ने ही द्रौपदी को इसका महात्मय सुनाया था। 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में होता है करवा चौथ 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ कहते हैं। इसमें गणेश जी, भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय का पूजन करके उन्हें पूजन दान से प्रसन्न किया जाता है। इसका विधान चैत्र की चतुर्थी में लिख दिया है। परन्तु विशेषता यह है कि इसमें गेहूं का करवा भर के पूजन किया जाता है और विवाहित लड़कियों के यहां चीनी के करवे पीहर से भेजे जाते हैं। इसमें कहानी  सुनने के बाद चन्द्रोद्रय में अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है।


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