जिला रामरुद्र मुख्यमंत्री उत्कृष्ट विद्यालय के संस्थापक एवं महान शिक्षाविद मनबोध महथा की पुण्यतिथि विद्यालय प्रांगण में श्रद्धा एवं सम्मान के साथ मनाई गई। इस अवसर पर प्रांगण में स्थित उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया तथा विशेष विशेष प्रार्थना सभा आयोजित की गई। विद्यालय के प्रबंधक एमपी सिंह ने प्रार्थना सभा को संबोधित करते हुए मनबोध महथा के शैक्षिक योगदान, आदर्शों और अनुशासनप्रिय व्यक्तित्व को याद करते हुए विद्यार्थियों को उनके पदचिह्नों पर चलने की प्रेरणा दी। प्राचार्य डॉ. संतोष कुमार ने मनबोध महथा के व्यक्तित्व, समाज में उनके योगदान एवं विद्यालय की स्थापना के इतिहास पर प्रकाश डाला। सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं विद्यालय परिवार के सभी सदस्यों ने श्री मनबोध महथा जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
विद्यालय का गौरवशाली रहा है इतिहास
जिला रामरुद्र मुख्यमंत्री उत्कृष्ट विद्यालय (पूर्व नाम—रामरूद्र उच्च विद्यालय) अपनी स्थापना से आज तक शिक्षा, अनुशासन और सामाजिक चेतना का केंद्र रहा है। इस विद्यालय की कहानी केवल एक संस्थान की नहीं, बल्कि दो मित्रों की अमर मित्रता और शिक्षा-समर्पण की गाथा है।अक्टूबर 1947 में स्वतंत्र भारत के मानभूम जिले (वर्तमान पुरूलिया, धनबाद व बोकारो क्षेत्रों) के पहले डीएम रामरूद्र प्रसाद सिन्हा, निरीक्षण के दौरान चास स्थित जोधाडीह मोड़ पर अपने पुराने मित्र, कोलबेंदी गांव के निवासी और शिक्षाविद मनबोध महथा से मिले। एक ओर सूट-बूट में प्रशासनिक अधिकारी और दूसरी ओर धोती-कुर्ता में शिक्षा-सेवा में समर्पित एक ग्रामीण शिक्षक—दोनों का मिलन उस दिन इतिहास रच गया।
चाय की चुस्कियों के बीच हो गया स्कूल स्थापना का निर्णय
चाय की चुस्की के बीच जब डीएम सिन्हा ने पूछा कि मनबोध, आजकल क्या कर रहे हो?”तो मनबोध बाबू ने उत्तर दिया। इस क्षेत्र के गरीब बच्चों को पढ़ा रहा हूँ, लेकिन उचित जगह नहीं है। तभी डीएम सिन्हा की दृष्टि पास खड़े द्वितीय विश्व युद्ध के सैनिक-गोदाम पर पड़ी और उन्होंने वह भवन शिक्षा के नाम समर्पित करते हुए मनबोध बाबू से कहा कि तुम इसमें स्कूल खोलो। कुछ ही दिनों में वह गोदाम विद्यालय के लिए आवंटित हो गया और यहीं से रामरूद्र उच्च विद्यालय की यात्रा प्रारंभ हुई।
स्थापना से अब तक की यात्रा
अक्टूबर 1947 में द्वितीय विश्व युद्ध के गोदाम का विद्यालय के लिए आवंटन हो गया. उसे अस्थायी स्थापना अनुमति 01.01.1948 को हुआ. 01.01.1951 को स्थायी स्थापना अनुमति मिली। 2011 में हायर सेकेंडरी, 2022 में मुख्यमंत्री उत्कृष्ट विद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ. स्कूल के पहले प्रधानाध्यापक मनबोध महथा बने. वे एक जनवरी 1948 से चार जुलाई 1980 तक प्रधानाध्यापक रहे. इसमें आठवीं से 12वीं तक की पढ़ाई हो रही है. 1980 तक बांग्ला माध्यम में शिक्षा, जिसे प्रारंभ करने और प्रोत्साहित करने में मनबोध महथा का विशेष योगदान रहा। वे बांग्ला भाषा के अद्भुत प्रेमी और विद्वान थे।
विद्यालय का नाम — मित्रता की मिसाल
जब डीएम रामरूद्र सिन्हा ने भवन उपलब्ध कराया, तो मनबोध महथा ने विद्यालय का नाम अपने मित्र के नाम पर रामरूद्र उच्च विद्यालय रखा। डीएम ने आपत्ति जताते हुए किसी महापुरुष का नाम सुझाने को कहा, तब मनबोध बाबू ने कहा कि इस क्षेत्र में शिक्षा की बुनियाद रखने वाले से बड़ा महापुरुष कोई नहीं। यह विद्यालय आपके नाम पर ही रहेगा।इस प्रकार यह विद्यालय संभवतः संयुक्त बिहार–बंगाल–ओड़िशा क्षेत्र में पहला ऐसा विद्यालय बना, जिसका नाम किसी डीएम के नाम पर रखा गया।
विद्यालय स्थापना की विचारधारा—शिक्षा ही सच्ची आज़ादी
मनबोध महथा ने अंग्रेजी सरकार की नौकरी स्वीकार नहीं की। उन्होंने अपना जीवन गांव-गांव में शिक्षा की रोशनी फैलाने को समर्पित किया। 1990 में उनके निधन के बाद भी वे चास–चंदनकियारी क्षेत्र में अनुशासन, ज्ञान और सेवा के प्रतीक माने जाते हैं. साधारण सैनिक-गोदाम में शुरू हुआ यह विद्यालय आज उत्कृष्ट शिक्षा, अनुशासन, सांस्कृतिक समृद्धि और नैतिक मूल्यों का प्रमुख केंद्र है। हजारों विद्यार्थी यहां से पढ़कर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं।
